Description
भारत के तलवारबाज और स्मारक प्रेमी किन्नर Bharat ke Talwarbaj aur Smarak premi Kinnar पुस्तक किन्नरों के बारे में संपूर्ण जानकारी दे रही है। किन्नरों को असली पहचान और मान-महत्व मिला मुगलकाल में। मुगलकाल का मतलब है आगरा। किन्नरों ने अकबर और जहांगीर के समय में मनसबदारी हासिल की। किन्नर किसी भी सामान्य सैनिक की तरह तलवारबाजी और घुड़सवारी में भी माहिर थे। मुगल बादशाहों की तरह जीते जी अपने स्मारक बनवाए। मृत्योपरांत उन्हें वहीं दफनाया गया। ये स्मारक आज भी किन्नरों की गौरवगाथा के गवाह हैं। एक किन्नर ने एत्मादपुर कस्बा तक बसा दिया। ताज्जुब यह है कि इन किन्नरों के बारे में सामान्य जन को जानकारी नहीं है। इतिहास में भी इनका उल्लेख विस्तार से नहीं है।
किन्नरों का उपयोग गुप्तचरी के कार्य में भी किया जाता था। किन्नर हरम की बेगमों और रानियों पर नजर रखते थे। उनकी गतिविधियों और बातचीत के बारे में अपने राजा को सूचना देते थे। ये बेगमें और रानियां भी किन्नरों से जासूसी कराती थीं। इस कारण किन्नरों का महत्व बढ़ता जा रहा था। मुगलकाल में तो किन्नर बादशाहों की नजर में चढ़ते गए। कुछ तो इतने चढ़ गए कि सामंत मनसबदार, सूबेदार तक बन गए। युद्ध के लिए किन्नरों के नेतृत्व में सेना तक को भेजा गया। मुगलों के समय किन्नर जमींदार, फौजदार और योद्धा भी थे।
सुफियाना अंदाज भी किन्नरों का रहा है। किन्नर की दुआ में इतना असर कि बरसात तक करा दी। मुगल इतिहास में सर्वाधिक शक्तिमान सम्राट अकबर तक किन्नर के पास मन्नत मांगने गए और उनकी मन्नत पूरी भी हुई।
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