क्या है फतेहपर सीकरी का रहस्य Kya Hai Fatehpur Sikri ka Rahsya

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  1. 10वीं सदी में फतेहपुर सीकरी जैन आचार्यों की बस्ती थी। शांति विमलाचार्य नामक जैन मुनि के नाम का उल्लेख मिल ही गया है।
  2. फतेहपुरसीकरी में दूसरी सदी की जैन प्रतिमा मिली है। मथुरा में इस तरह की मूर्तियां खूब मिलती हैं। इसमें रत्ती भर भी संदेह नहीं है कि अकबर से सैकड़ों साल पहले फतेहपुर सीकरी जैन संस्कृति का प्रमुख केंद्र थी।
  3. अब जबकि पुरातात्वविक प्रमाण मिल गए हैं तो इतिहासकारों को फतेहपुर सीकरी के बारे में नए सिरे से सोचना चाहिए। उन्हें खोज करनी चाहिए कि अकबर से पूर्व फतेहपुर सीकरी में क्या था? अगर कोई यह कहता है कि अकबर से पहले फतेहपुर सीकरी में सिर्फ पहाड़ी थी तो यह सूरज को दीपक दिखाने जैसा ही है।
  4. उत्खनन में मिली मूर्तियों से यह साबित हो गया है कि ईसा की दूसरी शताब्दी से लेकर दसवीं शताब्दी तक यहां जैन मंदिर थे। इतने लंबे समय तक जैन धर्म का कीर्तिस्तंभ यहां फहरता रहा है। यह कोई मामूली बात नहीं है।
  5. हमें लगता है कि कुछ इतिहासकारों ने फतेहपुर सीकरी के संबंध में जैन धर्म के साथ छल किया है। ऐसा छल कि एक हजार साल बाद यह पता चल रहा है कि फतेहपुर सीकरी जैन धर्म का केन्द्र स्थल था। इसका संबंध आगरा, मथुरा, भरतपुर, ग्वालियर, धौलपुर, दिल्ली से भी था।
  6. इस इतिहास को छिपाने का कार्य किसने किया? यह पता लगाने की जरूरत है।

Description

विश्वदाय स्मारक फतेहपुर सीकरी वास्तव में रहस्यमय है। फतेहपुर सीकरी का इतिहास भी उलझा हुआ है। लिखित इतिहास कहता है कि फतेहपुर सीकरी का निर्माण मुगल शासक औरंगजेब ने कराया। पुरातात्विक और समकालीन प्रमाण कहते हैं कि फतेहपुर सीकरी तो 1000 साल प्राचीन है। जब राणा सांगा और बाबर में युद्ध हुआ तब फतेहपुर सीकरी पर राजा धामदेव का शासन था। युद्ध में पराजय होने के बाद वे गहमर गांव चले गए। यहां उत्खनन में जैन प्रतिमाएं मिली हैं।

 

भारत का प्रत्येक क्षेत्र न केवल स्वयं में इतिहास को समेटे हुए है वरन् संस्कृति की अविरल परंपरा का साक्षी और वाहक है। आगरा और निकटवर्ती फतेहपुरसीकरी क्षेत्र प्राचीन काल से ही सभ्यता और संस्कृति का केंद्र रहा है। इतिहास की धारा में अनेकानेक मानव-निर्मित विरासत के अवदान आज भी प्राप्त होते हैं। इतिहास की दृष्टि से समृद्ध होने के बावजूद यहां अभी भी ढेरों रहस्य अनावृत्त होने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। अनवरत अन्वेषण एवं शोध प्रक्रिया निरंतरता और परिवर्तन के सूत्रों की तलाश में रत है। वास्तव में इतिहास एवं पुरातत्व का वर्णन अध्ययन एवं अनुसंधान पर आधारित है ही।

 

फतेहपुरसीकरी के मुगलकालीन इतिहास पर बहुत कुछ। लिखा जा चुका है, पर अभी ते बहुत कुछ मुगल काल का ही प्रकाश में नहीं आया है। शाही नगर होने के कारण शोधार्थियों क ध्यान इस पर इतना केंद्रित रहा कि आस-पास फैली समृद्ध विरासत उपेक्षित रही। कुछ जिज्ञासुओं अनुसंधानकर्ताओं और खोजी पत्रकारों का ध्यान अवश्य इधर गया।

इसी क्रम में पुरातत्व विभाग द्वारा 1999-2000 ई. में कराए गए उत्खनन के बाद फतेहपुरसीकरी के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य प्राप्त हुए। इन नए प्रमाणों व अवशेषों पर गहन शो व अध्ययन की आवश्यकता है। इस उत्खनन, इससे प्राप्त अवशेषों व नई जानकारी को आ आदमी तथा इतिहासविदों तक सहजता से पहुँचाने में युवा पत्रकार डॉ. भानु प्रताप सिंह क भूमिका उल्लेखनीय है।

 

कार्यक्षेत्र कोई भी हो, उसमें उच्च स्तर तभी मिलता है जब पूरी लगन, ईमानदारी व्यक्तिगत रुचि के साथ कार्य करते हैं। डॉ. भानु प्रताप सिंह ने फतेहपुरसीकरी के तत्काली उत्खनन से संबंधित खबरों को इसी प्रकार के भावों के साथ लिखा और प्रकाशित करान उन्होंने खबरों को पूर्ण ईमानदारी के साथ प्रस्तुत किया, उस पर विद्वानों की प्रतिक्रिया प्राप्त तथा छापी और इस प्रकार उन खोजों व प्रमाणों के आधार पर इतिहासप्रेमियों के मध्य एक बब की शुरुआत कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके लिए डॉ. भानु प्रताप सिंह बधाई के हैं। वह यहीं तक नहीं रुके। उन्होंने उन खबरों व विश्लेषणों को सहेजकर रखा और अब पुस्तक के रूप में प्रकाशित करा रहे है।

 

इतिहास के क्षेत्र में यह पुस्तक सूचनाओं का एक महत्वपूर्ण स्त्रोत सिद्ध होगी। नए पत्रकारों के लिए भी यह प्रेरणास्पद रहेगी, ऐसा मेरा विश्वास है। डॉ. भानु प्रताप सिंह ने एक इतिहास प्रबुद्ध पत्रकार के रूप में अपनी भूमिका निभाई है। अब इतिहासविदों व शोधकर्ताओं दायित्व है कि इस उत्खनन से प्राप्त अवशेषों व अन्य प्रमाणों का गहन अध्ययन व शोध क इतिहास के रहस्यों को सुलझाएं और इतिहास के नए पृष्ठों की रचना करें।

प्रो. सुगम आनंद. आचार्य, इतिहास विभाग एवं प्रति-कुलपति डॉ. भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय (पूर्ववर्ती आगरा विश्वविद्यालय

 

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